
मन में हुई उथल - पुथल , आये फिर तुम याद  ,
बंद हो जाएँ पलके , है  ये दिल की फ़रियाद  ,
क्योंकि आओगी फिर तुम ,
ख्वाबों की गहरायिओं में |
धीमे पांव , हथेली पे रखे  प्रेम दीया ,
तेरी छवि ने  प्रेम राग छेड़ दिया , 
आतुर हुआ मनं फिर कदम चूमने ,
ख्वाबों की गहरायिओं में |
ना जाने कैसे पता चली तुम्हे मेरी  पसंद,
सर पे रखे नीली  चुनर , मुस्काती हुई  मंद-मंद ,
सोचा!सदा के लिए कर लूं कैद , तुम्हारी इस  छवि को,
ख्वाबों की गहरायिओं में|
हुई सांझ , आई है अरुणाई नेत्रों में भर ,
रूक गयी  रक्त प्रवाह, और हुई हृदय की ओर अग्रसर,
प्रेम चंद्रमा  उदित करने तुम ,
ख्वाबों की गहरायिओं में|
पर बीच राह में गए तुम छोड़  कर ,
साथ निभाने की कसम  तोड़कर 
स्वप्न टूटा , खुली पलके ,और
तुम हुई  गुम ,
ख्वाबों की गहरायिओं में|
फिर से वही सूना   मन,
 ख्वाबों में खोजता  अपनापन ,
और आसुओं में डूबती हुई पलके ,
है आश लगाये क़ि आओगे तुम फिर कल  ,
ख्वाबों की गहरायिओं में|
Tuesday, May 4, 2010
ख्वाबों की गहरायिओं में
Posted by mind hunter at 11:41 PM 2 comments
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